Impleadment
This is the assertion of anyone's right to be heard...
Saturday, March 24, 2012
उन्हें समझो तो कविता समझ लेना
"अँधेरे में उजाले और भूख में निवाले के बीच संवेदना की भगदड़ है,
कुछ शब्द बिखरे हैं, कुछ निखरे हैं उन्हें समझो तो कविता समझ लेना."
-----राजीव चतुर्वेदी
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सवा अरब की आबादी में प्यार की कविताए कहते लोग सुनो...
ख्वाब में दर्ज हैं ख्वाहिश की इबारत यारो
शब्दकोषों से न समझो आचरण का व्याकरण
समय की सूखी नदी मैं याद की नावें
उठो तुम खौलते पानी से जैसे भाप उठती है
अरमानो के वीरानों में वक्त जो चीखा इक चिड़िया सा
मेरी बंजर भावनाओं के गलियारों में
यहीं से ज़ुल्म की कड़ी पे पहला वार आएगा...
उसके हाथ में कांटे और सपनों में गुलाब था
मेरे जिस्म को मत देख जख्मों का जखीरा है यहाँ
जिन्दगी बहती है बहती हैं नदियाँ जैसे
तेरे मेरे बीच का दरिया खामोशी से बहता था
मैंने वह बोला जो खुरचा था ह्रदय के पंकिल तलों से
बिल्लियों ने रास्ता काटा बहुत
उन्हें समझो तो कविता समझ लेना
समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को
"सोच लूं सजदे के पहले, वह इस काबिल है भी क्या ?" -...
मैंने कुछ शब्द खरीदे हैं बाज़ार से खनकते से हुए
तू अगर खुदा है तो खुद्दार मैं भी हूँ
कासी के अमीरों से कबीरों का पता पूछा
कवि निरपेक्ष होते हैं सापेक्ष नहीं
त्रिज्या अब सयानी हो गयी है
मैं एक लडकी थी, करती भी क्या ?
सपने तो तैरे थे मेरी आँखों में
शब्दों का सन्नाटा तोड़ो --कुछ तो बोलो
जिन्दगी के इस सफ़र को रंग रोचक तो बनाता है
ख्वाब अब कोई नहीं शेष बचा इन आँखों में
कलाम -ऐ- पाक की कसमें, आयत और रवायत भी
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
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