"मेरे हक को तू नकार दे
मेरे हौसले का हिसाब दे
जो फासला था दरमियां
वह आज भी घटा नहीं
तू अगर खुदा है तो खुद्दार मैं भी हूँ में मजहबों में बंटा नहीं इबादतों से हटा नहीं
तू है देवता तो ये बता ये रास्ता क्यों अजीब है
गुनाह तो मेने नहीं किया फिर ये क्यों मेरा नसीब है
जहान में तू जहां भी है मुझे आज तक तू दिखा नहीं कभी तू कहीं मिला नहीं
तेरे बिना में कल भी था तेरे बिना में अब भी हूँ
ये वहम था मेरे जहन का जो आज तक मिटा नहीं ." --- राजीव चतुर्वेदी
3 comments:
अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन प्रस्तुति
तू है खुद्दार
यह मेरी खुदाई है
जो है रंग बेरंग वह ईमान से बेवफाई है
........बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति...
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