"सपने तो तैरे थे मेरी आँखों में
कितने ? ---अंदाज़ नहीं,
मेरा हर सपना
घूँघट से चल कर चौखट तक आया
फिर बिखर गया
सपने सच हो जाएँगे इक रोज
इन्ही संघर्षों में
जीवट से जूझा मैं मरघट पर आया
फिर किधर गया
सपनो का हश्र यहाँ होता है यह
कुछ इधर गया, कुछ उधर गया, कुछ बिखर गया
आने वाली पीढी की आँखों में
हर सपना जो था सहमा सा वह ठिहर गया." -----राजीव चतुर्वेदी
कितने ? ---अंदाज़ नहीं,
मेरा हर सपना
घूँघट से चल कर चौखट तक आया
फिर बिखर गया
सपने सच हो जाएँगे इक रोज
इन्ही संघर्षों में
जीवट से जूझा मैं मरघट पर आया
फिर किधर गया
सपनो का हश्र यहाँ होता है यह
कुछ इधर गया, कुछ उधर गया, कुछ बिखर गया
आने वाली पीढी की आँखों में
हर सपना जो था सहमा सा वह ठिहर गया." -----राजीव चतुर्वेदी
1 comment:
बेहद अच्छी रचना...
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