"जिन्दगी बहती है बहती हैं नदियाँ जैसे
गुजरे रास्तों पर लौट कर आती ही नहीं
पत्थरदिलों के बीच नदियों सा बहा मैं,
कुछ पत्थरों ने चीर डाला था मुझे
कुछ को रगड़ कर रेत मैंने कर दिया
कुछ बह गये बहाव में
कुछ थे खड़े तटस्थ साक्षीभाव में
कुछ घाट से स्थिर खड़े ही रह गए
याद है वह नाव मुझमें तैर कर अपने किनारे खोज फिर क्यों खो गयी
जिन्दगी बहती है बहती हैं नदियाँ जैसे
गुजरे रास्तों पर लौट कर आती ही नहीं." ---- राजीव चतुर्वेदी
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