Thursday, March 22, 2012

मैंने कुछ शब्द खरीदे हैं बाज़ार से खनकते से हुए

"कुछ शब्द भेजे थे तुम्हारे पास
राह में बैठे अभी वह हाँफते होंगे
जिन्दगी की राह में यादों के तुम पौधे लगाओ
आंसुओं की खाद दो, सींचो उन्हें तुम विवशताओं से अभी
एक दिन वह पेड़ बन कर छाओं देंगे भावनाओं को कभी
शब्द सौंदर्य का असीमित राग होते हैं
शब्द भावनाओं का भागीरथी प्रयास होते हैं
शब्द संस्कारों के हैं सारथी
शब्द हर मंदिर के हैं प्रार्थी
शब्द आराधना के रूप मैं हैं आरती
योजना वह भावनाओं की हों या भय की रूप रेखा
शब्द की सामर्थ्य समझो भी कभी
शब्द हर सभ्यता का आख़िरी हथियार होते हैं." ---- राजीव चतुर्वेदी (4April11)
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"
मैंने जो शब्द तौले थे पलकों पर कभी
उन्हें तुम बोल पाए क्या ?
न बोलो,
चुप रहो,
हमारे बीच में शब्दों की जरूरत है भी क्या ? " ----- राजीव चतुर्वेदी
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" सहमे सुलगते शब्द सड़कों पे क्यों आने लगे,
गर्मियों में झुग्गीयाँ हर साल जलती हैं."       ----- राजीव चतुर्वेदी
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" शब्द सिहर गए है
ठहर गए हैं
ठण्ड लग गयी है उन्हें
आग जलाओ शब्दों को तपाओ
आग में वह पिघलेंगे
आँख से वह निकलेंगे
जुबान पर आयेगे
होठ मुस्कुराएंगे
कलम से वो छलकेंगे
गीत से वो चहकेंगे
आग को सुलगाओ
समय की उदास भट्टी में
शब्दों को तपाओ
पिघलते शब्द अगर बहे तो सुलग जायेंगी शांत बस्तियां
शब्द लड़ाई की शुरूआत करते हैं
शब्द लड़ाई का आख़िरी हथियार होते हैं.
भाषा को लोरियां मत सुनाओ  
ठन्डे शब्दों को सुलगाओ
एक और क्रान्ति करनी है इन्ही शब्दों को अभी." --- राजीव चतुर्वेदी
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" शब्द भूखे ही लौट आये हैं चरागाहों से इस शाम
और नदी भी हमारे बीच रेंगती है इस रात को
  बांस के झुरमुट के सहारे खेत के उस ओर मेड़ों पर
   चाँद रोटी सा सुन्दर नज़र आने लगा है."----राजीव चतुर्वेदी
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" शब्द छलके हथेली में रखे पानी की तरह,
अफ़सोस ये कि पूरे अफ़साने में जुबां खामोश रही." -- राजीव चतुर्वेदी
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"शब्द सत्ता के जब शामिल हों जरूरत के जनाजे में,
सत्य को ललकारता जब सायरन का शोर हो
न्याय के मंदिर की मैना मौन की मुद्रा में हो
और धृतराष्ट्र की नज़रों पे निर्भर यह हमारा राष्ट्र हो
तो समझ लो क्रांति अब बेचैन है भूगर्भ में भूकंप सी
गाव की पगडंडीयों से तुम ये कह दो राजपथ से पूछ्लें अब वह हिसाब.
"---- राजीव चतुर्वेदी 

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