"ओस और आंसू का अस्तित्व गिरने में ही है,
उठो तुम खौलते पानी से जैसे भाप उठती है.
बता दो आसमां को अश्क का उपहास मत कर ,
नज़र नीचे करो और देख लो
दहकता है जो दिल में वो जज्वा है,
ज्वालमुखी से जैसे आग उठती है. "---- राजीव चतुर्वेदी
उठो तुम खौलते पानी से जैसे भाप उठती है.
बता दो आसमां को अश्क का उपहास मत कर ,
नज़र नीचे करो और देख लो
दहकता है जो दिल में वो जज्वा है,
ज्वालमुखी से जैसे आग उठती है. "---- राजीव चतुर्वेदी
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