"निशा निमंत्रण के निनाद से
हर सूरज के शंखनाद तक
रणभेरी के राग बहुत हैं
युद्धभूमि में खड़े हुए यह तो बतलाओ कौन कहाँ है ?
दूर दिलों की दीवारों से तुम भी देखो वहां झाँक कर वहां हाशिये पर वह बस्ती राशनकार्ड हाथ में लेकर हांफ रही है
और भविष्य के अनुमानों से माँ की ममता काँप रही है
सिद्ध, गिद्ध और बुद्धि सभी की चोंच बहुत पैनी हैं
घमासान से घायल बैठे यहाँ होंसले,... वहां घोंसले
नंगे पाँव राजपथ पर जो रथ के पीछे दौड़ रहा है
वह रखवाला राष्ट्रधर्म का राग द्वेष की इस बस्ती में बहक रहा है
और दूर उन महलों का आँगन तोड़ी हुई कलियों के कारण महक रहा है
निशा निमंत्रण के निनाद से
हर सूरज के शंखनाद तक
रणभेरी के राग बहुत हैं
युद्धभूमि में खड़े हुए यह तो बतलाओ कौन कहाँ है ?"------राजीव चतुर्वेदी
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