This is the assertion of anyone's right to be heard...
Thursday, July 19, 2012
जिन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र ...
"जिन्दगी से बहुत प्यार हमने किया आज श्रद्धांजलि के शोर मुझको चौका रहे है शोहरत की बुलंदी से जब गिर रहा था मैं,-- तुम कहाँ थे ? रोमांस का अक्षांश अब मैं जानता हूँ तुम जानते हो मैं मरीचिका था फिर मेरी मौत पर खुश क्यों नहीं हो तुम ? गीत लिखता था कोई, संगीत देता था कोई,... सपने किसी के चित्र मेरा था, चरित्र औरों का हर पल रुपहला ख्वाब का छल रहा था मैं शोहरत के पहाड़ों से क्षितिज कुछ दूर था, ---जो मेरा भ्रम ही था कुछ तितलियाँ जो शोख सी दिखती थीं मुझे उस मोड़ पर अब खो गयी हैं ख्वाब में मकरंद मेरा लूट कर कोई अंजू कोई टीना अब नज़र आती नहीं इस भीड़ में सच है, -- मर गया हूँ मैं मैं ज़िंदा जब भी था क्या तुम मेरे साथ थे ? दौलत , बुलंदी और शोहरत के महल में मैं रहा,... तुम भी रहे थे चंद रोज वह जो पैसे के लिए थे पास मेरे,... पूछने पानी को भी नहीं आये सच है, -- मर गया हूँ मैं जिन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र ..." -----राजीव चतुर्वेदी
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