" देश की "ऋषि- कृषि परम्परा" को सोनियां की शातिर सरकार नष्ट करने पर आमादा हैं. सरदार मनमोहन सिंह को हम तो समझते थे कि अर्थशास्त्री है इसने तो हमारी अर्थव्यवस्था की अर्थी ही निकाल दी.दस वर्ष पहले कृषि की देश की अर्थ व्यवस्था में 70% भागीदारी थी जो अब घट कर मात्र 20% ही रह गयी है.(मुद्रास्फीति की दर 11% ) - (देश की विकास दर 8%) = - 3% (यानी देश की विकास दर ऋणात्मक है ). यह विकास दर नहीं विनाश दर हुई. अब संतों ने जब देश का धन विदेशो में ढोकर लेजाने वालों को ललकारा तो इन हरामदेवों को रामदेव खलनायक और बालकृष्ण विदेशी नज़र आने लगे जबकि सोनिया स्वदेशी और कसाब जी साहब लगते हैं. अब "रामदेव" और "हरामदेव" के बीच " रामजादे" और "हरामजादे" साफ़ नज़र आ रहे हैं." ----- राजीव चतुर्वेदी
Friday, July 6, 2012
देश की "ऋषि- कृषि परम्परा" को सोनियां सरकार नष्ट करने पर आमादा हैं
" देश की "ऋषि- कृषि परम्परा" को सोनियां की शातिर सरकार नष्ट करने पर आमादा हैं. सरदार मनमोहन सिंह को हम तो समझते थे कि अर्थशास्त्री है इसने तो हमारी अर्थव्यवस्था की अर्थी ही निकाल दी.दस वर्ष पहले कृषि की देश की अर्थ व्यवस्था में 70% भागीदारी थी जो अब घट कर मात्र 20% ही रह गयी है.(मुद्रास्फीति की दर 11% ) - (देश की विकास दर 8%) = - 3% (यानी देश की विकास दर ऋणात्मक है ). यह विकास दर नहीं विनाश दर हुई. अब संतों ने जब देश का धन विदेशो में ढोकर लेजाने वालों को ललकारा तो इन हरामदेवों को रामदेव खलनायक और बालकृष्ण विदेशी नज़र आने लगे जबकि सोनिया स्वदेशी और कसाब जी साहब लगते हैं. अब "रामदेव" और "हरामदेव" के बीच " रामजादे" और "हरामजादे" साफ़ नज़र आ रहे हैं." ----- राजीव चतुर्वेदी
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