"गांधी बनाम भगत सिंह या गांधी बनाम गोडसे या गांधी बनाम आंबेडकर या गांधी बनाम सुभाष...कुल मिला कर हम इन राष्ट्रनायकों को ऐसे लड़ा रहे हैं जैसे ये तीतर-बटेर या मुर्गे हों. पहली बात तो यह कि इन महान लोगों की तुलना वही करे जिसका बज़न इन दोनों से अधिक हो. जैसे यदि आपको 10 Kg. तोलना है तो आपके व्यक्तित्व में कम से कम 21 Kg. का भार उठाने की क्षमता होनी चाहिए क्योंकि लगभग 10 Kg का बाट + 10 Kg का वह सामान (व्यक्ति ) + 1 Kg. का तराजू =21 Kg. पर विडंबना यह कि हम लुच्चे टुच्चे व्यक्तित्व के लोग इन महान लोगों की काल्पनिक तुलना करके अपने आपको प्रासंगिक बनाने की कूट रचना कर रहे हैं. दूसरे, -- गांधी के विरुद्ध कभी भगत सिंह/ आंबेडकर /सुभाष /गोडसे ने अपशब्द का प्रयोग नहीं किया. भगत सिंह जी तो महान लेखक भी थे और गांधी जी के द्वारा प्रारंभ किये गए अखबार का सम्पादन करने लाहौर से आये थे. उन्होंने कभी कहीं भी गांधी जी की आलोचना नहीं की फिर हम कौन होते हैं उनके स्वयंभू प्रवक्ता बनने वाले ? तीसरे, -- इस तरह की बहसें छेड़ने वाले क्या बताएँगे कि इन महापुरुषों के समकालीन उनके हमारे दादा नाना की आज़ादी की लड़ाई में क्या भूमिका थी ? चौथे, --इन महान पुरुषों की तुलना करते हुए हम उस काल खंड की बात करते हैं जिसकी हमको आधी अधूरी और एक पक्षीय जानकारी ही है. मुर्दागृह में अगरबत्ती जलाने से या कब्रें खोदने से प्रगतिशील नहीं बनते. हम अपने वर्तमान में कहाँ हैं और जहाँ हैं वहां क्या कर रहे हैं ?
"कल उन्होंने आसमान पर थूका था बड़ी मुस्तैदी से,
आज कहने लगे मानसून अच्छा आया." ----- राजीव चतुर्वेदी
======================================================================
"महात्मा गांधी ने नमक क़ानून तोड़ने की नोटिस 2 March'1930 देते हुए अंग्रेज वायसराय को लंबा पत्र लिखा था -- "...जिस अन्याय का उल्लेख किया गया है वह उस विदेशी शाशन को चलाने के लिए किया जाता है, जो स्पष्टतह संसार का सबसे महँगा शासन है. अपने वेतन को ही लीजिये यह प्रतिमाह 21 हजार रुपये से अधिक पड़ता है, अप्रत्यक्ष भत्ते आदि अलग. यानी आपको प्रतिदिन 700 रूपये से अधिक मिलता है ,जबकि भारत की प्रति व्यक्ति औसत आमदनी दो आने प्रति दिन से भी कम है. इस प्रकार आप बारात की प्रति व्यक्ति औसत आमदनी से पांच हजार गुने से भी अधिक ले रहे हैं. ब्रिटिश प्रधान मंत्री ब्रिटेन की औसत आमदनी का सिर्फ 90 गुना ही लेते हैं...यह निजी दृष्टांत मैंने एक दुखद सत्य को आपके गले उतारने के लिए लिया है...."
गुजरी सदी में उठाया गया गांधी का यह सवाल इस सदी में भारत के राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री और शाशन व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रासंगिक है. औसत भारतीय की रोजाना की आमदनी 32 रुपये के लगभग है जबकि राष्ट्रपति पर रोज 5 लाख 14 हजार से ज्यादा खर्च होता है जो औसत भारतीय की तुलना में 16063 गुना अधिक है .इसी प्रकार प्रधानमंत्री पर रोजाना 3 लाख 38 हजार रूपये खर्च आता है जो औसत भारतीय की आमदनी का 10562 गुना अधिक है .केन्द्रीय मंत्रिमंडल पर रोजाना का खर्चा लगभग 25 लाख रुपये है जो औसत भारतीय की आमदनी का 1 लाख 5 हजार गुना है." --- राजीव चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment