"भाषा भ्रष्टाचार से लड़ने का पहला और अंतिम हथियार होती है. जिस देश समाज की भाषा ही चरित्रहीन और भ्रष्ट हो जाए वह देश या समाज भ्रष्टाचार से क्या लड़ेगा ? मिशाल देखिये --राजा ने मंत्री से कहा "छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाए तो क्या हुआ ?" चाटुकार मंत्री ने चतुर उत्तर दिया "मत्स्य न्याय". अगर यह भी न्याय है तो अन्याय किसे कहते हैं ? जमींदार के यहाँ पांच हजारे ले कर नाचे वह साली रंडी लेकिन दाउद अब्राहम या उनके जैसे ही लोगों के यहाँ दोबई में पचास लाख लेकर जो नाचे वह भारत की सांस्कृतिक राजदूत ऐश्वर्य राय. आगे देखिये ---अंजू महेन्द्रू , टीना मुनीम (अम्बानी) और अब कोई अडवानी सहित सैकड़ों से इश्क फरमाने वाले राजेश खन्ना "रोमांस के राजा" और कोई गरीब यही करता तो "साला छिनरा". सेना का जवान सीमा पर साहस जांबाजी दिखाए तो "बोल्ड". कोई लड़की किसी लफंगे का प्रतिकार करे या चैन स्नेचर को पकड़ ले तो "बोल्ड " . कोई गुंडे का विरोध करे तो "बोल्ड " समझ में आता है पर जब बंबई की कोई वैश्यानुमा एक्टर नंगई पर आमादा हो तो उसे भी "बोल्ड" कह कर समाज की श्रेष्ठ साहसी महिलाओं के चरित्र को ही बोल्ड कर डाला. हिन्दी शब्दकोश में इंग्लिश के "Honesty" तथा "Punctuality" के अर्थ का कोई शब्द नहीं है ---क्यों ? क्योंकि इसकी अवधारणा ही हिन्दी भाषी समाज में नहीं थी यदपि उर्दू में दो शब्दों को मिला कर "ईमानदारी" जैसे शब्द बना लिए गए पर हिन्दी भाषी समाज ने कोई आवश्यकता ही नहीं समझी.बड़े लोग जब चाहे धर्म विरुद्ध आचरण करें और उसे "आपाद धर्म" कह दें. क्या नैतिक मूल्य और सिद्धांत केवल गरीबों और माध्यम वर्गीय लोगों के लिए ही हैं ? सबसे शातिर लोगों के हाथों में सबसे बड़े शब्दकोष हैं . और भाषाई भ्रष्टाचार के लिए कितनी तरह की बोली बोलते हैं हम --- मुहं की आबाज़, गले की आवाज़, आत्मा की आवाज़ , अंतरात्मा की आवाज़ , भावना की आवाज़, परमात्मा की आवाज़ , दिल की आवाज़ , दिमाग की आवाज़...अरे भाई शरीर के अन्य अंग हवा निकालते में भी आवाज़ करते हैं. यह भाषा और इसकी परिभाषा सड़ रही है इससे बदबू आने लगी है. इसके पहले कि हमारे शब्द सत्य की शव यात्रा में शामिल हों ---सावधान !! ---याद रहे भाषा भ्रष्टाचार से लड़ने का पहला और अंतिम हथियार है." ----राजीव चतुर्वेदी
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