"वह खबर से लिपट कर बेखबर हो गयी ,
मेरे शब्दों के आगोश में जोश था.
मैं दहकता गया वह महकती गयी
मैं खिल सा उठा था वह चहकती गयी
मैंने देखा उसे वह बहकती गयी
वह खबर से लिपट कर बेखबर हो गयी
मेरे शब्दों के आगोश में जोश था
वह कविता की तरह ठिठकती ही रही
मैं कहानी की तरह सफ़र पर चल पडा
वह तितली के जैसी थिरकती ही रही
मैं हवाओं के जैसा मदहोश था
मेरे होठों ने हरकत करी थी शुरू
उसकी आँखें फ़साना बयाँ कर गयीं
मेरे जाजवात जमाने की जंजीरों में जकड़े रहे
उसका अंदाज़ जमाने से बेहोश था." ----राजीव चतुर्वेदी
2 comments:
बहुत खूब ... लाजवाब ..
अलग अंदाज ..
एक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
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