"तेरी आँखों से गाल पर बहते हुए जहां आंसू गिरे थे
उन रास्तों पर चल के मैं भी गिर गया हूँ अब जमीं पर
सोचता हूँ अब उठूँगा जब कभी मैं
भाप बन कर तापमानों के तिरष्कृत तर्क के कारण
असमान कारण से आसमानों की तरफ बादल बनूंगा मैं
इस तरह बरसात में हिस्सेदारी तेरी उस वेदना की हो सकेगी
तेरा वह आंसू भी शामिल है इसी बरसात में
तेरे बालों से झरता हूँ ...तेरी आँखों को धोता हूँ ...तेरे गालों से बहता हूँ
मैं आंसू हूँ गिर गया था... फिर उठा हूँ...स्वाभिमानो के तापमानो से आसमानों तक." ----राजीव चतुर्वेदी
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