"बात यदि होती सत्य निष्ठा और प्रतिष्ठा की,
सोचता मैं भी तुम्हारा हाथ लेकर अपने हाथों में
बात यह सीमित रही अहंकारों के प्रकारों पर
और मैं रोना चाह कर फिर हंस दिया था
आँख में आंसू नहीं थे अक्स नफरत के
सत्य के संकेत यदि होते सहमे से नज़रिए में
खोजता उसको हाथों में चेहरा ले तुम्हारा तुम्हारी ही निगाहों में." ---राजीव चतुर्वेदी
सोचता मैं भी तुम्हारा हाथ लेकर अपने हाथों में
बात यह सीमित रही अहंकारों के प्रकारों पर
और मैं रोना चाह कर फिर हंस दिया था
आँख में आंसू नहीं थे अक्स नफरत के
सत्य के संकेत यदि होते सहमे से नज़रिए में
खोजता उसको हाथों में चेहरा ले तुम्हारा तुम्हारी ही निगाहों में." ---राजीव चतुर्वेदी
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