"युद्ध में जो घायल हुए थे शब्द वह सुस्ता रहे हैं, ...शोर मत करना
साहित्य के लिए लालित्य का होना जरूरी है, ...वह कहाँ है ?
अध्ययन जब हो नहीं अनुभूतियाँ असमंजस में हों तो क्या लिखोगे ?
वही वीराना अपना जिसमें शब्द चमगादड़ से लटके हैं
देखलो टिमटिमाती लौ तुम्हारे अंतर्मन के नन्हे से दिए की लडखडाती सी
उस टिमटिमाते से दिए की रोशनी में अक्श को आकार दो
शब्द को संस्कार दो हथियार तब देना, ...अभी फूलों पे तितली राज करती है
तुम्हारा जोश, ...शब्द का होश, ...फूल पर ओस ...
सत्य की आहट का आकार करो साकार
साहित्य की मर्यादा तो मानो पर ये जानो साहित्य की सीमाएं नहीं होतीं
युद्ध में जो घायल हुए थे शब्द वह सुस्ता रहे हैं, ...शोर मत करना
साहित्य के लिए लालित्य का होना जरूरी है, ...वह कहाँ है ?" -----राजीव चतुर्वेदी
साहित्य के लिए लालित्य का होना जरूरी है, ...वह कहाँ है ?
अध्ययन जब हो नहीं अनुभूतियाँ असमंजस में हों तो क्या लिखोगे ?
वही वीराना अपना जिसमें शब्द चमगादड़ से लटके हैं
देखलो टिमटिमाती लौ तुम्हारे अंतर्मन के नन्हे से दिए की लडखडाती सी
उस टिमटिमाते से दिए की रोशनी में अक्श को आकार दो
शब्द को संस्कार दो हथियार तब देना, ...अभी फूलों पे तितली राज करती है
तुम्हारा जोश, ...शब्द का होश, ...फूल पर ओस ...
सत्य की आहट का आकार करो साकार
साहित्य की मर्यादा तो मानो पर ये जानो साहित्य की सीमाएं नहीं होतीं
युद्ध में जो घायल हुए थे शब्द वह सुस्ता रहे हैं, ...शोर मत करना
साहित्य के लिए लालित्य का होना जरूरी है, ...वह कहाँ है ?" -----राजीव चतुर्वेदी
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