"कुछ अक्श ऐसे थे जो आईनों में आकार ही लेते रहे
कुछ आह ऐसी थीं जो आहट सी थीं संगीत में
कुछ शब्द ऐसे थे जो अक्ल की अंगड़ाईयों में कैद थे
जिन्दगी के इस सफ़र में जो मिला ठहरा नही
इस समय भी कुछ लकीरें दर्ज हैं जो समय की रेत पर
समंदर की लहरों से टकरा रही होंगी
न अक्शों में, न आहों में , न शब्दों में, न सफ़र पर, न रेत की मिटती लकीरों में
तुम कहाँ हो ?
उनवान के नीचे का कोरा पन्ना खोजता है वह इबारत जो दर्ज होनी शेष है
क्या तुम्हारा नाम लिख दूं स्नेह के सारांश सा ?
हमसफ़र किसको कहूं फिर यह बताओ ?
सफ़र लंबा है... अभी जाना है मुझे दूर तुमसे...चलता हूँ मैं." -------राजीव चतुर्वेदी
कुछ आह ऐसी थीं जो आहट सी थीं संगीत में
कुछ शब्द ऐसे थे जो अक्ल की अंगड़ाईयों में कैद थे
जिन्दगी के इस सफ़र में जो मिला ठहरा नही
इस समय भी कुछ लकीरें दर्ज हैं जो समय की रेत पर
समंदर की लहरों से टकरा रही होंगी
न अक्शों में, न आहों में , न शब्दों में, न सफ़र पर, न रेत की मिटती लकीरों में
तुम कहाँ हो ?
उनवान के नीचे का कोरा पन्ना खोजता है वह इबारत जो दर्ज होनी शेष है
क्या तुम्हारा नाम लिख दूं स्नेह के सारांश सा ?
हमसफ़र किसको कहूं फिर यह बताओ ?
सफ़र लंबा है... अभी जाना है मुझे दूर तुमसे...चलता हूँ मैं." -------राजीव चतुर्वेदी
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