वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए
"वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए,
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?
वक्त की आंधी से जो अब गिर रहे हैं सूखे पत्ते से
वह रिश्ते हमारे
सुना है मिट्टी में मिल कर खाद बन जाते यहाँ हैं
इस खाद में फिर ख्वाब का पौधा उगेगा
पत्तीयाँ उसमें भी होंगी
सभ्यता के इस सफ़र में सहमते लोगो सुनो तुम
वह जो रिश्ते सूख कर थे गिर गए,
पेड़ के पीले से पत्तों की तरह
झाड़ कर दालान से बाहर भी तुमने कर दिया
अब क्या कोपल उगेंगी फिर नए विश्वास की ?" ----राजीव चतुर्वेदी
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