This is the assertion of anyone's right to be heard...
Sunday, April 8, 2012
हम टैक्स क्यों देते हैं ?
"हम
टैक्स क्यों देते हैं ? हमारे दिए धन को विभिन्न टैक्स के रूप में वसूल
कर उस खजाने पर नौकर शाह और नेता गुलछर्रे उड़ाते हैं और बचा खुचा हम पर
खर्च कर देते हैं फिर बताते हैं कई हमने यह पुल, वह पुलिया, वह सड़क, यह
बिजलीघर बनवाया---जैसे जो धन उस पर खर्च हुआ वह इनके बाप का था हमारा आप
का नहीं . संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत एक कल्याणकारी राष्ट्र है
पर हमारे टैक्स से कल्याण तो इन भ्रष्टाचारीयों का
ही हो रहा है. 70% ग्रामीण भारत से होने वाली आमदनी को 30% शहरों की सुख
सुविधा के लिए खर्च किया जाता है. कल्याणकारी राज्य में न्याय, चिकित्सा ,
शिक्षा, सुरक्षा निःशुल्क देना राज्य का दायित्व होता है पर यहाँ न्याय,
चिकित्सा, शिक्षा हम खरीद रहे हैं. गुजरे दस सालों से बजट का घाटा और
घोटालों की धन राशि में समानुपातिक रिश्ता है. बजट में निरंतर दवा महगी और
दारू सस्ती हो रही है, रोडवेज़ का किराया बढ़ रहा है और एयरवेज़ का किराया
घट रहा है. कोट सस्ते और कफ़न महगा हो रहा है. जिस तरह आज़ादी के लिए सिविल
नाफ़रमानी (सविनय अवज्ञा )आन्दोलन चलाया गया था उसी तरह अब हमको टैक्स न
देने का आन्दोलन चलाना होगा. हम टैक्स तभी देंगे जब टैक्स से जुड़े विभागों
के अधिकारी कर्मचारियों की संपत्ति की जांच हो जिनपर घूस का अथाह धन है
और सरकार ईमानदारी से हमारे धन को खर्च करने का विश्वास दिलाये.
भ्रष्टाचार के कारण कमजोर होते तन, सस्ते होते वतन और महगे होते कफ़न के
लिए लड़ो." ----राजीव चतुर्वेदी
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