(प्रस्तुत है --"इंडिया टुडे" साहित्य वार्षिकी 1994 में प्रकाशित संजय चतुर्वेदी की कविता जो आज भी प्रासंगिक है )
" जातक जब इस संसार में आया
विनी मंडेला और इमेल्डा मार्कोस में फर्क करना मुश्किल हो चुका था
और पचासी प्रतिशत जमीन पर पंद्रह प्रतिशत गोरों के बाज़ार ने
नेल्सन मंडेला का प्यार की दुनिया में स्वागत किया
दोनों के पास दूसरा कोई रास्ता बाकी नहीं था
रवांडा की लाशें झील में इकट्ठा होने लगी थीं
विचारों पर हरकतुल हथियार थी
कश्मीर में कभी हरकतुल अंसार थी कभी हरकतुल सरकार
लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी थे
बुद्धिखोरों में मक्कार चुप्पी थी
या फिर उन्होंने जोर- जोर से बताया
यह हरकतुल संसार है इसे साम्प्रदायिक न माने
ये और बात है कि एक सम्प्रदाय के बहुजन
मैदानी इलाके में पिकनिक मनाने को आमादा हैं
हिन्दुस्तान में कमुनिस्ट एक दुसरे पर थूकने में मशगूल थे
और एक अखबारनुमा माफिया के लफंगों ने
जनता के सामने औरतों को पीट डाला
और कुछ लोगों को अचानक मालूम हुआ
नागरिक कितना निहत्था है
और कस्बे में भले आदमी की तरह रहना
अपराधी की तरह रहने से अधिक दुश्बार है
और अपनी बुनियादी इज्जत को बचाना
एक रोजाना की लड़ाई है
और रोजाना लड़ना दंडनीय है
एक दरोगा चेक से रिश्वत ले कर मुस्कुरा रहा था
कि यह उसकी मॉडर्न सेंसिबिलिटी थी
अपराधी हमारे पैर पर खड़े होकर पेशाब कर रहे थे
और कवियों ने एक कार्यशाला का आयोजन किया था
लौकियों की मोहब्बत और कद्दू के गीत की गहराईयाँ
जिनके पास सब कुछ था
वे अपराधी हो चुके थे
जिनके पास बहुत कम था
उन्हें क़ानून से डरना सिखाया जा रहा था
अस्पतालों में बीमारों की फजीहत थी
सड़कों पर बेकारों को नसीहत
देश के चकलों में फंसी चालीस प्रतिशत स्त्रीयां
अठारह साल से कम उम्र की थीं
और मुट्ठी भर लोगों की पर्चेसिंग पावर बढ़ा कर
जादूगर हमें लिबर्टी की और ले चला
आठ आने की दवा अस्सी रुपये में मिलती थी
और अस्सी करोड़ रुपये एक फोन पर मिल जाते थे
भारतीय संस्कृत की कुछ खाश चीजें
कुछ ख़ास लोगों में कुछ ख़ास तरीके से बिकती थीं
और पद्म्खोरों की हरामखोरी के लम्बे इंतजाम थे
दिल्ली में इंडिया एक सेंटर था
जो इंटरनेशनल था
उधर प्रधानमंत्री ने बिल क्लिंटन से हाथ मिलाया
और अचानक हमने सुष्मिता सेन के बारे में जाना
जो पिछले दस सालों में बदहाल देशों से आई सातवीं विश्व सुन्दरी थी
जादू इंसान की अक्ल पर कादिर था
और मुफलिसों के पिछले दरवाजे से धडाधड हूरें निकल रही थीं
कि सेक्स और संस्कृत
आर्थिक बदलाव में
स्ट्रकचरल एडजस्टमेंट का हिस्सा थे
कि सेक्स में सही होना बहुत जरूरी था
कि सेक्सी होना
सेक्स में सही होना था
कि कितनी बार ऐसा लगता था
कि राजनीति में सही होने का कोई मतलब नहीं रह गया है
और सेक्स में जो विचार है उसको क्या हो जाता है
और इंद्र के किले अगर मजबूत हो गए तो कामदेव एक भडुआ बन कर रह जाएगा
बहुजन के नाम पर लफंगई
और क्रांति के नाम पर दलाली स्थापित संस्थाएं थीं
नौकरशाही में अचानक नायक पैदा होने लगे थे
एक बददिमाग और बदजुबान आदमी
जो तिकड़म और कॉलगर्ल चरित्र की बजह से शीर्ष तक पहुंचा था
धीरे -धीरे सारे हिन्दुस्तान को कॉलगर्ल बता चुका था
मजोली समझ के मझोले लोगों को लगा यह आया हीरो हमारा
और उन्हें ठीक ही लगा
एक लगभग अनजान युवती की गर्दन पकड़ कर
उसे प्रधानमंत्री बनाने की कोशिशें हो रही थीं
एक निर्वस्त्र और प्रजा पीड़ित राजा
अपनी तिकड़म में मार खाने के बाद
अब सुकरात के समाधि लेख की प्रूफ रीडिंग कर रहा था
खून के अंतिम बूँद तक जनता की सेवा करने का ऐलान
करिश्मा कपूर ने किया
मानव समाज में समझदारी की ऊटपटांग स्थिति थी
कुछ दिन पहले बिना किसी व्यापक दबाव के
पोप ने गैलीलियो से मांफी माँगी
और पवित्र पुस्तकों पुनर्व्याख्या होनी चाहिये ऐसा कहने पर
मुल्लाओं ने एक औरत की मौत का फरमान जारी कर दिया
ब्राजील के खिलाफ जो भी खेलता था
खेल को जेल बना कर खेलता था
और गालीयाँ ब्राजील को पड़ती थीं
जैसे कि दूसरों के खेल मैं भी सकारात्मक तर्क का प्रवेश
ब्राजील की ही जिम्मेदारी थी
मुशायरा मंच के पीछे होने लगा था
और कवियों के चेहरे देख कर लगता था
जैसे मुशायरा लूटने में शायरी लुटी हो
धीरे- धीरे विचार की जगह ख़बरें ले चुकी थीं
और ख़बरों की जगह विज्ञापन
यह माना जाने लगा था
कि विचार दो घंटे मैं पुस्तकालय से प्राप्त किये जा सकते हैं
और यह भी माना जाने लगा था
कि उनसे दूर रहना कोस्ट इफेक्टिव रहेगा
फिर भी दक्षिण अफ्रीका के अधिकाँश लोगों ने
गज़ब का धीरज और समझदारी दिखाई
और दुनिया के तमाम लोगों को निराश कर दिया
सुखों और उम्मीदों से भरी इस वसुंधरा पर फैला समर्थ मानव समाज
जो अन्य प्राणियों पर कब्जा कर चुका था
और जिसे सितारों से कोई ख़ास ख़तरा नहीं था
प्लास्टिक को लेकर चिंतित था
जो पर्यावरण में प्रदूषण
और गरीबों के पैर मैं चप्पल बन कर आई थी
समेकित संसार मैं जब संचार ने विश्व को एक गाँव बना दिया था
बहुजन अभिजन के लिए प्रदूषण थे
अभिजन बहुजन के लिए
इनका पेट फाड़ कर निकला मध्य वर्ग
दोनों के लिए प्रदूषण बन चुका था
और ऐसे में जातक ने सांस ली
उसके माता पिता के पास
यह बता पाने की प्रचलित सुविधा नहीं थी
कि रास्ता इधर से है
प्रज्ञा और प्रचुरता के साथ उसे प्रदूषण मिला
उसके हाथों में कुतुबनुमा
पैरों मैं चप्पलें थीं ." -------- संजय चतुर्वेदी
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