गुरु गोविन्द दोऊ खड़े ...गुनगुनाते बच्चे बड़े होते हैं ....गुरु को पूजते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचते है ...स्नातक बनते-बनते गुरुओं के प्रति उनका नजरिया बदलने लगता है. उनको मिलते हैं मटुकनाथ के कई संस्करण जो अवसर मिलते ही द्विआर्थी बातें करने में भी नहीं चूकते और क्लास में उनकी नज़रें नृत्य करती हैं ...नजराना भी वसूलती हैं, ... उन क्षात्रों को गुरु के नाम पर मिलते हैं कोचिंग के नाम से शिक्षा की दुकान चलाने वाले गुरु घंटाल जिनके पूरे सत्र में कितना पढ़ाएंगे यह घंटे ही तय नहीं हैं. उन क्षात्रों को इन गुरुओं की कथित योग्यता का रहस्य भी पता चल जाता है कि Ph.D. करने के लिए योग्य नहीं चहेता होना जरूरी है...बिना रीढ़ का केंचुआ जैसा होना जरूरी है...क्षात्राओं के शोषण की तो कहानी बहुआयामी है जो गुरु के प्रति घृणाभाव से भर देती है. परिणाम जो बच्चे-- "गुरु गोविन्द दोनो खड़े..." गुनगुनाते बड़े हुए थे ...गुरु को पूजते उनके पैर छूते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचे थे स्नातक होते होते तक उनके गुरु के पैर छूने के लिए पैरों की तरफ बढ़ने वाले हाथ गुरु के गिरहवान तक जा पंहुचते हैं और गाहे- बगाहे हो ही जाती है लातों की गुरु दक्षिणा. शिक्षक दिवस पर आत्म मुग्ध होने के वजाय शिक्षक आत्म प्रवंचना करें तो बेहतर होगा. शिक्षक दिवस की बधाई !! " ----राजीव चतुर्वेदी
Tuesday, April 17, 2012
सावधान !! यह शिक्षा प्रणाली हमारी पीढियां नष्ट कर रही है
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े ...गुनगुनाते बच्चे बड़े होते हैं ....गुरु को पूजते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचते है ...स्नातक बनते-बनते गुरुओं के प्रति उनका नजरिया बदलने लगता है. उनको मिलते हैं मटुकनाथ के कई संस्करण जो अवसर मिलते ही द्विआर्थी बातें करने में भी नहीं चूकते और क्लास में उनकी नज़रें नृत्य करती हैं ...नजराना भी वसूलती हैं, ... उन क्षात्रों को गुरु के नाम पर मिलते हैं कोचिंग के नाम से शिक्षा की दुकान चलाने वाले गुरु घंटाल जिनके पूरे सत्र में कितना पढ़ाएंगे यह घंटे ही तय नहीं हैं. उन क्षात्रों को इन गुरुओं की कथित योग्यता का रहस्य भी पता चल जाता है कि Ph.D. करने के लिए योग्य नहीं चहेता होना जरूरी है...बिना रीढ़ का केंचुआ जैसा होना जरूरी है...क्षात्राओं के शोषण की तो कहानी बहुआयामी है जो गुरु के प्रति घृणाभाव से भर देती है. परिणाम जो बच्चे-- "गुरु गोविन्द दोनो खड़े..." गुनगुनाते बड़े हुए थे ...गुरु को पूजते उनके पैर छूते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचे थे स्नातक होते होते तक उनके गुरु के पैर छूने के लिए पैरों की तरफ बढ़ने वाले हाथ गुरु के गिरहवान तक जा पंहुचते हैं और गाहे- बगाहे हो ही जाती है लातों की गुरु दक्षिणा. शिक्षक दिवस पर आत्म मुग्ध होने के वजाय शिक्षक आत्म प्रवंचना करें तो बेहतर होगा. शिक्षक दिवस की बधाई !! " ----राजीव चतुर्वेदी
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