Tuesday, April 17, 2012

सावधान !! यह शिक्षा प्रणाली हमारी पीढियां नष्ट कर रही है



"सावधान !! यह शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों का बचपना और युवाओं की तरुणाई छीन रही है और पूरी की पूरी पीढी को कुंठित बना रही है. जिनको हम मास्टर / शिक्षक कहते हैं उनके बारे में भ्रम यदि हो तो दूर कर लें. जो मेडीकल एंट्रेंस की परिक्षा में फेल हो जाता है वह जीव विज्ञान का मास्टर बनता है, जो इन्जीनियरिंग की एंट्रेंस परिक्षा में फेल हो जाता है वह फिजिक्स  या गणित का मास्टर बनता है. हिन्दी का मास्टर हिन्दी का बड़ा कवि या साहित्यकार नहीं हुआ और अंगरेजी का मास्टर अंगरेजी का बड़ा लेखक नहीं हुआ. अमेरिका अर्थशास्त्र के 62 मास्टरों /प्रोफेसरों को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरष्कार मिला तो उसकी अर्थ व्यवस्था गर्त में चली गयी. पूरी दुनिया में राजनीति शास्त्र का कोइ मास्टर सीनेट या संसद या विधान सभा का सदस्य होना तो दूर सभासद भी नहीं हो सका है.मतलब साफ़ है या तो वह जिस विषय को पढता-पढाता आ रहा है वह राजनीति नहीं है या वह राजनीति समझता ही नहीं है और अपने ही विषय में अयोग्य है. जो मास्टर विधि (Ll.B.) पढ़ाते हैं वह अछे वकील नहीं हैं. इस तरह के मास्टरों के दिए अंकों से हम किसी की योग्यता भला कैसे नाप सकते हैं ? जो बेचारी लडकीयाँ शोध करती हैं वह अपने गाइड के किन देहिक /दैविक /भौतिक ताप को हरने को मजबूर की जाती हैं यह सार्जनिक सच सत्यापन का मोहताज नहीं. "वो क्या बताएंगे राह हमको, जिन्हें खुद अपना पता नहीं है" . इस तरह की शिक्षा प्रणाली हमारी पीढियां नष्ट कर रही है." ---राजीव चतुर्वेदी
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गुरु गोविन्द दोऊ खड़े ...गुनगुनाते बच्चे बड़े होते हैं ....गुरु को पूजते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचते है ...स्नातक बनते-बनते गुरुओं के प्रति उनका नजरिया बदलने लगता है. उनको मिलते हैं मटुकनाथ के कई संस्करण जो अवसर मिलते ही द्विआर्थी बातें करने में भी नहीं चूकते और क्लास में उनकी नज़रें नृत्य करती हैं ...नजराना भी वसूलती हैं, ... उन क्षात्रों को गुरु के नाम पर मिलते हैं कोचिंग के नाम से शिक्षा की दुकान चलाने वाले गुरु घंटाल जिनके पूरे सत्र में कितना पढ़ाएंगे यह घंटे ही तय नहीं हैं. उन क्षात्रों को इन गुरुओं की कथित योग्यता का रहस्य भी पता चल जाता है कि Ph.D. करने के लिए योग्य नहीं चहेता होना जरूरी है...बिना रीढ़ का केंचुआ जैसा होना जरूरी है...क्षात्राओं के शोषण की तो कहानी बहुआयामी है जो गुरु के प्रति घृणाभाव से भर देती है. परिणाम जो बच्चे-- "गुरु गोविन्द दोनो खड़े..." गुनगुनाते बड़े हुए थे ...गुरु को पूजते उनके पैर छूते महाविद्यालयों / विश्व विद्यालयों तक पंहुचे थे स्नातक होते होते तक उनके गुरु के पैर छूने के लिए पैरों की तरफ बढ़ने वाले हाथ गुरु के गिरहवान तक जा पंहुचते हैं और गाहे- बगाहे हो ही जाती है लातों की गुरु दक्षिणा. शिक्षक दिवस पर आत्म मुग्ध होने के वजाय शिक्षक आत्म प्रवंचना करें तो बेहतर होगा. शिक्षक दिवस की बधाई !! " ----राजीव चतुर्वेदी

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