Tuesday, April 17, 2012

आंसू मेरी आँख में इबादत की तरह महके थे

"जख्म उसने दिए थे मगर सलीके से,
आंसू मेरी आँख में इबादत की तरह महके थे
दिमाग में इबारत और दिल में इमारत जितनी भी थीं ढह गयीं
लडखडाते पाँव मेरे रास्तों पर बहके थे
रात लम्बी थी ग़मों की चांदनी ओढ़े हुए
हर सुबह हम याद तेरी करके फिर से चहके थे. " ------राजीव चतुर्वेदी

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